Saturday, July 18, 2020

CHAMAN BAHAR MOVIE REVIEW



फिल्म प्रेम रोग का मशहूर गीत है... भंवरे ने खिलाया फूल फूल को ले गया राजकुंवर। ये गाना फिल्म चमन बहार के प्लॉट को बखूबी दर्शाता है। यहां प्रॉब्लम बस एक है और वो ये है कि फिल्म में एक दो नहीं बल्कि राजकुमारों की पूरी पलटन है। कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर और कुछ मोटरसाइकिल पर और एक तो बकायदा जोंगा जीप पर सवार होकर अपना दावा ठोक रहा है। हिरोइन का पीछा करते हुए वो कहता है, गाड़ी जरा स्पीड में चलाओ, पता तो चलना चाहिए पीछा हो रहा है। इन सबके बीच है अपना हीरो जीतू कुमार जो फिल्म में बिल्लू पानवाले के किरदार में है वो भी मन ही मन लड़की को चाहता है। फिल्म में छोटे शहरों में होनेवाली इश्कबाजी के सारे पैंतरे मौजूद हैं। एकतरफा प्यार, हाथ पर लड़की का नाम गुदवाना, म्यूजिकल ग्रिटिंग कार्ड, पेड़ और पहाड़ पर नाम लिखना।
फिल्म का हीरो जंगल में नाइट गार्ड की सरकारी नौकरी को ठुकरा देता है और आत्मनिर्भर बनने का फैसला करता है। जी हां वो पान की दुकान शुरू करता है। लेकिन जिला बदलने से वो रास्ता जिसपर उसकी दुकान है वो वीरान हो जाती है। दुकान शुरू करते ही मक्खी मारने की नौबत आ जाती है। लेकिन जल्दी ही उसकी किस्मत पलटती है और उसकी दुकान और जिंदगी दोनों में बहार आ जाती है। फिल्म की हीरोइन स्कूल में पढ़ने वाली टीनएज लड़की है जो शॉर्ट्स पहनती है और स्कूटी चलाती है। ये खबर जंगल में आग की तरह शहर भर में फैल जाती है। फिर क्या लड़की स्कूटी पर आगे आगे और सारा शहर पीछे पीछे। अपना हीरो बिल्लू भी लड़की से गुपचुप प्यार करने लगता है, फिल्म के एक सीन में वो लड़की को म्यूजिकल ग्रिटिंग कार्ड देने की सोचता है, ग्रिटिंग कार्ड की दुकान में जब वो आई लव यू वाला कार्ड दिखाने को बोलता है तो दुकानदार हैरत भरी नज़र से उसे देखता है ऐसे जैसे उसे यकीन नहीं की इस घामर को कौन लड़की अपना दिल दे बैठी। यकीनी तौर पर जीतू कुमार का किरदार पूरी फिल्म में उतना ही निरीह नज़र आता है।
लड़की को पटाने की सारी खेमेबाजी जीतू के पान दुकान पर ही होती है। और दुकान का बिजनेस भी इसी तमाशे पर टिका होता है। एक सीन में लड़के इस बात पर सट्टा लगा रहे होते हैं कि तीन बड़े दावेदारों में से कौन लड़की का दिल जीतने में कामयाब होगा। इस फिल्म के अंदाज में कहूं तो पटाने में कामयाब होगा।

फिल्म का निर्देशन किया है 'राजनीति' और 'आरक्षण' जैसी फिल्मों में प्रकाश झा को असिस्ट कर चुके युवा निर्देशक अपूर्वधर बड़गैयाँ ने जो खुद छत्तीसगढ़ से हैं।
पंचायत और शुभ मंगल ज्यादा सावधान में जीतू कुमार ने खुद को गांव कस्बे के एक साधारण से चरित्र के तौर पर बखूबी स्थापित किया है। इस फिल्म में भी जीतू का कैरेक्टर आपको फिल्म छोटी सी बात के अमोल पालेकर की झलक देता नज़र आएगा जो इश्क के मामले में फिसड्डी है। फर्क सिर्फ इतना है कि चमन बहार में हीरो की मदद के लिए कोई अशोक कुमार नहीं है। आशिकी की जंग में जीतू कुमार अकेला ही मैदान में डटा हुआ है। एकतरफा आशिकों के इस घमासान में कौन सिकंदर बनता है यही है फिल्म की कहानी।
अब तीन अच्छी बातें जो फिल्म को देखने लायक बनाती हैं.. पहली जीतू कुमार की एक्टिंग जबरदस्त है। वेब सिरीज पंचायत के बाद उनके चाहनेवालों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। उन्होंने चमन बहार में उस छवि को आगे बढ़ाया है। उनके अलावे सपोर्टिंग कलाकारों ने भी बढ़िया काम किया है। खासकर सोमू और छोटू की भूमिका में भुवन अरोड़ा और धीरेन्द्र कुमार ने समां बांध दिया है। दोनों फिल्म में सूत्रधार की भूमिका में हैं। दूसरा फिल्म के डायलॉग रोचक और गुदगुदाने वाले हैं। डायलॉग में संदर्भों को स्मार्टली इस्तेमाल हुआ है। एक सीन में सोमू डैडी बिल्लू को समझाते हुए कहता है कि हर रघु को एक विठ्ठल कानिया की जरूरत पड़ती है। एक और डायलॉग है शाहरूख का पिच्चर देख देख के चॉकलेटी हो गए हैं सब के सब।
फिल्म में ऐसे डॉयलॉग भर भर के हैं। फिल्म में ग्रामीण परिवेश का चित्रण उम्दा है और लोक संगीत का बखूबी इस्तेमाल हुआ है।
अब कुछ बातें जो मेरे हिसाब से बेहतर हो सकती थी। फिल्म में स्कूल में पढने वाली एक लड़की के पीछे पूरा कस्बा बौराया घूम रहा है, यहां तक तो फिर भी ठीक है लेकिन आशिकों की इस फेहरिस्त में स्कूल के मास्टर का शामिल होना हजम नहीं होता। दूसरा ये कि चमन बहार टिपिलक मर्दों की दुनिया है। फिल्म में फिमेल कैरेक्टर का कोई भी पक्ष नज़र नहीं आता।
कुल मिलाकर.... चमन बहार फिल्म है गांव कस्बे के पनबट्टी पर होने वाली अड्डाबाजी और आशिकी की। मुंह में पान की गिलौरी, सिगरेट का छल्ला और होठों पर फिल्मी तराना। भारत के गांव कस्बों के चौक चौराहों पर ये दृश्य आम है। रिलीज होने के बाद से चमन बहार लगातार नेटफ्लिक्स इंडिया टॉप टेन में पहले स्थान पर कब्जा जमाए हुए है। नेटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो जैसे ओटीटी प्लैटफॉर्म ने बड़े और छोटे बजट की फिल्मों के साथ होनेवाले भेदभाव को मिटा दिया है। अब यहां वही बिकेगा जिसमें दम होगा।

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