Monday, December 23, 2013

अनसुनी आवाजें - जनसत्ता के संपादकीय पृष्ठ पर 17.01.14 को प्रकाशित

वो अपनी नन्हीं बाहों को खींच खींचकर लंबा करता और ताड़ के पत्तों से बने झाड़ू से बर्थ के नीचे पड़े कूड़े साफ कर रहा था। उम्र यही कोई 7-8 साल होगी, कपड़ों के नाम पर बदन पर मैले-कुचैले चीथड़े झूल रहे थे। बीच-बीच में किसी भोजपुरी फिल्म का गीत भी गुनगुना रहा था। लोअर बर्थ पर पैर नीचे लटकाए बैठे एक सज्जन का पैर उसकी झाड़ू से छू गया, वो चिल्लाया – क्या करता है बे! सुनते ही उसने फौरन अपने गंदे और पीले दांत निपोड़ दिए। नन्ही उम्र में ही गुटखा खाने की लत लग गई थी शायद।
 दिल्ली से जयनगर जानेवाली ग़रीब रथ समस्तीपुर पहुंचनेवाली थी। वो बरौनी जंक्शन पर ट्रेन में चढ़ा था। पानी की खाली बोतलें, चिप्स, बिस्कुट के खाली रैपर, तंबाकू और गुटखे की पुड़िया... यात्रियों की मेहरबानी से कूड़े की कोई कमी नहीं दिखती बोगी के भीतर। बर्थ के नीचे से निकलती गंदगी की ढेर से बोगी खत्म होते-होते कूड़े का अंबार सा लग गया। उसने पूरी ताकत के साथ सारे कूड़े को एसी-3 कोच के दरवाजे से बाहर धकेला। बाहर ट्वायलेट के पास बैठकर कुछ देर तक वो कूड़े में अपने काम की चीजें ढूंढता रहा। ऐसे जैसे वो अपने भविष्य की तस्वीर ढूंढ रहा हो। बिस्कुट, फ्रुट केक, चिप्स, चॉकलेट के रंग बिरंगे रैपर देखकर उसकी आंखों में चमक आ जाती थी। वो हर रैपर को बड़े ही ध्यान से देखता, खंगालता। आखिरकार उसे एक फ्रुट केक का टुकड़ा मिला। उसने फूंक मारकर उसे साफ किया और मुंह में डाल लिया। आधी इस्तेमाल की हुई गुटखे की पुड़िया पैंट में खोंसते हुए वो कोच में फिर दाखिल हुआ और यात्रियों से पैसे मांगने लगा। कहीं से पैसे मिलते तो कहीं से दुत्कार, सबको समान भाव से समेटता हुआ वो मेरी सीट के पास पहुंचा।
मैंने पूछा- नाम क्या है तुम्हारा?
उसने बताया- नीतीश।सुनते ही पड़ोसी यात्री हंसते हुए बोल पड़ा- हे.. हे.. अबे, मुख्यमंत्री होके झाड़ू लगाता है।ट्रेन की गंदगी और सफाई के बहाने राजनीति की चर्चा छिड़ते ही एक और सज्जन बीच में कूद पड़े - नीतीश कुमार राज्य की गंदगी साफ कर रहे हैं और ये ट्रेन की गंदगी साफ कर रहा है। कूपे में कुछ लोग हंसने लगे। हालांकि बिहार जानेवाली ट्रेनों में लालू और नीतीश के नाम पर राजनीतिक बहस लोगों का सबसे प्रिय शगल है लेकिन उस बच्चे को तुकबंदी वाला ये चुटकुला समझ नहीं आया। हालांकि लोगों के हंसने पर उसे कोई खास ऐतराज भी नहीं था। जाहिर है ऐसी ताने भरी हंसी सुनना उसकी दिनचर्या में शामिल होगा।  मुझे अचानक ख्याल आया की बिहार में नीतीश कुमार की सरकार को आए भी करीब साढ़े सात-आठ साल हुए हैं। संभव है मां बाप ने परिवर्तन और विकास की उम्मीद में बेटे का नाम नीतीश रख दिया होगा।ना चाहते हुए भी मैंने वो घिसा पिटा सवाल भी पूछ ही लिया - स्कूल जाते हो?
लेकिन इससे पहले की वो जवाब देता किसी ने उसे झिड़का अबे, भीख मांगता है, कोई काम काहे नहीं करता है।
लड़के के जवाब में सवाल था- भीख मांग रहे हैं ?  झाड़ू लगावे में मेहनत नहीं पड़ता है का?” उसकी आवाज़ में स्वाभिमान था।खिड़की वाली सीट पर जमे स्थूलकाय सज्जन ने लड़के का साथ दिया और मुंह में रखे पान को संभालते हुए सर को थोड़ा ऊपर और आंखें नीची करके गुलगुलाते हुए स्वर में बोले- झाड़ू के लिएऐसा मत बोलिए भाई साब, दिल्ली में देखे नहीं झाड़ू का खेला। आम आदमी पार्टी वाला सब कइसे बड़का बड़का नेता लोगों का गरदा झाड़ दिया है। ई लड़का लोग भी आगे चल के आप पार्टी का नेचुरल सपोर्टर बनेगा।मुद्दे को भटकता देख लड़के ने आखिरी कोशिश की – पइसा देना है त जल्दी से दीजिए, हमरा औरो बोगी देखना है। आपलोगों जैसा गपास्टिंग से पेट नहीं भरता है हमारा।     मेरी दिलचस्पी उसमें बढ़ने लगी। मैं उसके रहन- सहन के बारे में सब जान लेना चाहता था। मेरे भीतर के पत्रकार ने एक और सवाल दागा। कितना कमा लेते हो एक दिन में?
इतनी देर में वो शायद मेरे सवालों से उकता चुका था।बोला- एतना सवाल काहे पूछते हैं? जो देना है जल्दी से दीजिए और नक्की करिए। सवाल पूछ- पूछ के करोड़पति बना दीजिएगा का?
हमारे सवाल जवाब का सिलसिला कुछ और चलता कि अचानक उसकी नज़र बोगी के दूसरे छोर पर पड़ी, उधर देखकर उसके चेहरे का भाव अचानक बदल गया और वो गुस्से और हिकारत के साथ चिल्लाया रे राहुलवा, भागले रे स्साला हमरा बोगी से, साला झाड़ू लगइली हम आ पइसा लेवे हइ तू हरामी इतना कहता हुआ वो उधर की ओर लपका जहां राहुल नाम का उसका हमउम्र लोगों से पैसे मांग रहा था। दोनों बच्चे हाथ में झाड़ू लिए बोगी पर अपने हक़ को लेकर झगड़ने लगे। ट्रेन के शोरगुल में उनकी आवाज़ कहीं गुम होती चली गई।  

No comments: