Monday, December 23, 2013

भरि गिलास चाय

सांझ पहर प्रगति मैदान सं नॉर्थ कैंपस जेवाक लेल बस पकड़लौं। सीट नाहि भेटल से हमहूं बाकि जका एक कात देख क उपरका रॉड पकड़ि क टंगि गेलौं। हमरा सामने के सीट पर दू गोटा मैथिली में गप करैत रहि। एक गोटा खिड़की कात में बैसल आंखि फाड़ि-फाड़ि क दिल्ली दर्शन में तन्मय रहे आ दोसर टूरिस्ट गाइड जका  दिल्ली के जानकारी देव में लागल रहै। बातचीत से लागल जे पहिल गोटा नभ-नभ दिल्ली में पहुंचल रहि। दोसर पहिने से दिल्ली में कोनो फैक्ट्री में मजदूरी करैत रहै।
वो अपन अनुभव नभका छौरा के सुनावैत जाइत रहै। "हमर फैक्ट्री में मजदूर सब के बड मान दान हो छै, सरदार मालिक अपन बच्चा जका हमरा सब के मानै छै।"
                                                       ई सुनिते नभका मजदूर आंखि में खुशी आ आस के मिलल जुलल भाव लेने ओकरा दीस तकलकै। पुरनका मजदूर अपन धुनि में सुनावैत जाइत रहै। "रोज काम शुरू होइ स पहिने भरि गिलास चाय सब मजदूर के भेटै छै।" उ जे लस्सी बला गिलास नै होइ छै तहि में भरि गिलास चाय दइ छै। आ सबके पीय परै छै। ना नै कहि सकै छी।
मालिक अपना हाथ से सबके चाय दै छै।
नभका मजदूर अचरज में ई गप सुनैत रहै। बीच में टोकलक- आरौ बहिं ऐना कत होइ छै रौ।
                                                   पुरनका मजदूर आगा बतैलक जे मालिक सब मजदूर के अपना समांग जका मान करै छै। सांझ में काम खतम भेला के बाद एक भरि गिलास चाय फेर भेटै छै। चाय पीने बिना मालिक नै जै दइ छै।
हमहूं ई वार्तालाप सुनैत रहि। बड़ी काल तक सोचैत रहलौं कि आखिर दिल्ली में एहन कोन मालिक हेतै जे अपन मजदूर सबके अते चिंता करै छै। ई सब विचार करैत किंग्सवे कैंप पहुंच गेलौं।
अगिला दिन संगीत नाटक अकादमी में मित्र भारती जी स भेंट भेल। भारती जी संग गप सरक्का में हम दुनु मजदूर के बातचीत के चर्चा केलियन।
तहन भारती जी हमरा समझौला - यौ नइ बुझलिय, दिल्ली के सरदार फैक्ट्री मालिक सब मजदूर से बेसी काज निकालै के लेल ओकरा अफीम आ गांजा मिलल चाय रोज पियावै छै। मजदूर सब अफीम के नशा में खूब काज करै छै आ ऊपर से ओकरा पर एहसान ई की मालिक रोज दू गिलास चाय पियावै छै। एक बेर मजदूर के अफीम बला चाय के लत लागि गेल तहन ओकरा दोसर ठाम मन नै लागि छै। ऊ घूमि घूमि के ओतै जाति छै।
"एकरा कहै छै एक तीर से दू टा शिकार"

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