“झूठी अम्मा”
अक्टूबर की मीठी सर्द शाम थी, मैं तेज़ कदमों
से मधुबनी रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ रहा था। शाम के छे बजे थे। एक घंटे लेट चल रही दरभंगा
से जयनगर जानेवाली पांच बजिया पैसेंजर ट्रेन मिलने की उम्मीद थी। प्लेटफॉर्म पर
दाखिल होते ही वहां पसरे सन्नाटे ने बता दिया कि ट्रेन जा चुकी है। अगली ट्रेन आने
में देर थी। मालूम हुआ ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर दो पर आएगी। मैं फुटओवर ब्रिज पार कर
प्लेटफॉर्म नंबर दो पर आ गया। प्लेटफॉर्म नंबर दो-तीन पर निर्माण कार्य जोरों पर था।
निर्माण सामग्री इधर-उधर बिखरी पड़ी थी। वहीं प्लेटफॉर्म के एक कोने में एक
बुढ़िया ईंटों को जोड़कर चूल्हे में लकड़ी सुलगा कर कुछ पका रही थी। उसने अपना
सारा सामान एक बोरे में रखा हुआ था। दोबारा मेरा ध्यान उसकी तरफ तब गया जब वो चिल्ला रही थी, “गे छोरी, एम्हर आबि क खेल, ओम्हर खइस पड़बिही” (ऐ लड़की, यहां आकर खेलो, वहां गिर पड़ोगी।) मैंने देखा थोड़ी दूरी पर डेढ़-दो साल की एक बच्ची मैले कुचैले कपड़ों में
खेल रही थी। कुछ देर खेलते-खेलते उसे नींद आने लगी। वो उस बुढ़िया के बगल में
बैठकर ऊंघने लगी। बुढ़िया उसे बार-बार उठाकर कहती बस अभी खाना बन जाएगा। खाकर
सोना। आग पर चढ़ी हांडी उतारकर उसने तवा चढ़ा दिया। हाथों से ही रोटियों को
थपकियां देकर उसने तवे पर डालना शुरू कर दिया। उसने जल्दी से बोरी से एक थाली
निकाली और हांडी से सब्जी के नाम पर उबले आलू निकालकर उसमें परोस दिया। बच्ची
गरमागरम रोटी तोड़कर आलू के साथ खाने लगी। दोनों के खा चुकने के बाद बुढ़िया ने
सारे बर्तन प्लेटफॉर्म के पियाऊ पर धोया और उसे वापस बोरी में समेटकर सोने की
तैयारी करने लगी। बोरी से एक प्लास्टिक निकालकर वहीं बिछा दिया और बच्ची को उसपर
सुला दिया। एक रस्सी निकाली और बच्ची के हाथ में बांध दिया और उसका एक सिरा अपने
हाथ में बांधकर सो गई।
उन दोनों को देखकर अब तक मेरे मन में कई सवाल
उठने लगे। आखिर कौन हैं ये दोनों?
बच्ची के मां-बाप कहां हैं। बच्ची अकेली इस बूढ़ी अम्मा के साथ प्लेटफॉर्म पर रहने
को क्यों मजबूर है। उस बच्ची के बारे में सोचकर मेरा मन एक अंजान डर से भर गया। कहीं
कोई बच्चा चोर उसे उठा ले गया तो। क्या मामूली सी रस्सी उस बच्ची की रक्षा करने में
कामयाब होगी? अगर
बुढ़िया को कुछ हो गया तो फिर इस बच्ची का
क्या होगा? कौन
रखेगा उसका ख्याल? सवाल
कई थे, पर जवाब एक भी नहीं।
इस वाकये को दो साल गुज़र गए। इस बीच मधुबनी से
जयनगर जाने की भागमभाग में एक-दो बार और उनपर नजर पड़ी होगी। कई बार जी में आया की
उनसे जाकर बात करूं। पर जाने क्या सोचकर रुक गया।
आज दो साल बाद इकत्तीस दिसंबर 2017 की शाम चार
बजे हैं। मैं एक बार फिर मधुबनी स्टेशन पर पांच बजिया ट्रेन की राह देख रहा हूं। प्लेटफॉर्म
नंबर एक पर पत्थर के बेंच पर बैठा में मोबाइल में मैसेजेज चेक करने में मशगूल हो
गया। इतने में महसूस हुआ कि भीख मांगती एक आवाज़ पास आ रही है। थोड़ी देर बाद ही
वो आवाज़ बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गई। मैंने नज़र उठाकर देखा वही बुढ़िया खड़ी थी।
वो गिड़गिड़ाती आवाज़ में खाने के लिए पैसे मांग रही थी। मैंने देखा अभी भी उसके
कंधे पर एक प्लास्टिक की बोरी टंगी थी और उसके साथ करीब चार साल का एक लड़का खड़ा
था। लड़के ने फुल पैंट और नीले रंग का स्वेटर पहना हुआ था लेकिन पैर नंगे थे। उसे
देखते ही मुझे उस बच्ची का ख्याल हो आया। मैंने पर्स से बीस रुपये का नोट निकाला
और बुढ़िया के हाथ में रख दिया। बीस का नोट देख उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने
फौरन मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वादों की बौछार कर दी। मैंने अपनापन दिखाते हुए
कहा-मैंने आपको कई बार देखा है यहां। उसने फौरन पूछा- क्या मैं आसनसोल का हूं? मैंने कहा नहीं, मेरा घर जयनगर है। उसके सवाल
से लगा शायद वो आसनसोल की है।
मैंने आगे पूछा- वो जो एक बच्ची थी आपके साथ वो
नज़र नहीं आ रही। कहां है वो? ये
सवाल सुनते ही बुढ़िया थोड़ा संभल गई। कुछ पल रुक कर बोली- यहीं कहीं खेल रही
होगी। मुझे उसका जवाब थोड़ा अटपटा लगा। खैर, मैंने उसके साथ खड़े लड़के की तरफ
इशारा करते हुए पूछा, ये कौन है?
उसने कहा- मेरा पोता है, गोलू। मैंने अपने बैग से एक चॉकलेट निकालकर गोलू की तरफ
बढ़ा दिया। बच्चा उसे हाथ में लेकर निहारने लगा। बुढ़िया अपनी धुन में सुनाए जा
रही थी, कैसे
वो एक बार वो दरभंगा से लौट रही थी तो कुछ उचक्कों ने उसकी बोरी छीन ली। जिसमें
खाना पकाने के लिए कुछ बर्तन और राशन का सामान था। तबसे वो खाना नहीं बनाती। भीख
मांगकर पैसे जुटाती है और सड़क किनारे सस्ते होटल में जाकर पेट भर लेती है। वो
लगातार बड़बड़ा रही थी लेकिन मेरा मन उस बच्ची के बारे में सोचकर उद्धिग्न होने
लगा।
आखिर कहां गई होगी वो बच्ची? कहीं कोई उसे छीन तो नहीं ले गया। कहीं उसे
कुछ हो तो नहीं गया। मेरे मन का वहम अब शक में बदलने लगा। कहीं इस बुढ़िया ने उसे
किसी के हाथों बेच तो नहीं दिया। उसकी जगह कोई और बच्चा ले आई हो। कहीं ये बच्चा
चोर गिरोह की सरगना तो नहीं है।
चॉकलेट खाते-खाते उस बच्चे ने पानी की फरमाइश
की- अम्मा, पानी दो। बुढ़िया ने बोरी से एक बोतल निकाली और पास के पियाऊ से पानी
लेने चली गई।
मेरा मन अब उस लड़के को लेकर भी चिंतित होने
लगा। इसी उधेड़बुन में मेरी निगाह उस पर गई जो अभी तक बड़ी सावधानी से चॉकलेट के
छोटे छोटे टुकड़े काटकर खा रहा था। मुझसे निगाह मिलते ही वो हंसा और पास आ गया। मैंने
भी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर दिया।
उसने हंसते हुए कहा- “मेरी अम्मा सबको झूठ बोलती है कि मेरा नाम गोलू
है। मेरा नाम तो आरती है”।
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